सर्वे भवन्तु सुखिन: भारतीय रूप
देश क्या होता है?
राज्य क्या होता हैं?
हम भारतीय हैं। हमारी संस्कृति "सर्वे भवन्तु सुखिन" वाली रही है। लगता है कि इस संस्कृति को हम भूल रहे है। विश्व में कई सारी सभ्यताओं के अस्तित्व है। भारत की भी अपनी सभ्यता रही है, और है भी जिसको हम सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से जानते है।
जब हमारी सभ्यता कहती है कि पूरा विश्व सुखी रहे है। फिर हम कौन होते है ये कहने वाले कि पाकिस्तान का मुर्दाबाद हो, चीन का मुर्दाबाद हो, अमेरिका का मुर्दाबाद हो? हम भारत के नागरिक है। जो हमे जन्म से मिला है। और भारत का नागरिक होने के नाते मुझे अपने देश से प्यार है। देश के लिये सम्मान है। जिसको कोई बदल नहीं सकता।
देश- राज्य आख़िर अस्तित्व में क्यों है? ऐसा तो नहीं है कि देश पहले आया और अपने लोगों को बोला कि ये तुम्हारा देश है, वो उसका देश है। आख़िर, देश को सीमा के अंदर तो हमने बाँधा है। भारत में पैदा हुये तो भारतीय और पाकिस्तान में पैदा हुए तो पाकिस्तानी या अमेरिका में पैदा हुए तो अमेरिकी। चीन में रहने वाले लोगों की तारीफ़ कर दिया तो चीन की तरफ़दारी करता है, ऐसा बोलने लगते है लोग। अगर पाकिस्तान की कर दिया तो पाकिस्तानी बोलने लग जाते है। क्या किसी देश में जन्म लेने से हम दूसरे देश की तारीफ़ नहीं कर सकते है? वहां रहने वाले लोगों की समस्या को उठा नहीं सकते है। राजनीतिक स्तर पर सरकारों के बीच असहमति हो सकती है। आर्थिक स्तर पर आपस में प्रतियोगिता कर सकते है। पर इसका ये मतलब तो नहीं हुआ कि हम उस देश के लिये बुराई सोचे। जैसे हम खुद को जिंदाबाद बोलते है। उसी तरफ से हमे भी दूसरों का जिंदाबाद कहना चाहिए। हैदराबाद में एक लड़की को इसलिए जेल में डाल दिया गया क्योंकि उसने पाकिस्तान जिंदाबाद बोली। क्या उसके पाकिस्तान जिंदाबाद बोलने से पाकिस्तान जिंदाबाद हो गया? और क्या हमारा लोकतंत्र इतना कमज़ोर है कि उस 19 साल के लड़की के कहने पर लोकतंत्र खतरे में पड़ गया है? हम किस लोकतंत्र की बात करते है। जिसमे एक लड़की के आवाज़ को देशद्रोही बता दिया जाता है। क्या विश्व को जिंदाबाद कहने पर वो देशद्रोही हो गई? चीन, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, बंगलादेश के लिए दुआ करना, देशद्रोह हो गया? तो हमे भूल जाना चाहिए कि हम विश्व की सबसे बड़ी लोकत्रांत्रिक देश में रहते है। लोकतंत्र का मतलब सिर्फ चुनाव नहीं होता। उसमें रहने वाले लोगों के लिए एक स्पेस भी होता है। जहां वो देश के बेहरती के लिए संवाद कर सके। जहाँ वो अपनी बात रख सके। देश में कोई समस्या हो तो उस पर बात कर सके। लोकतंत्र सिर्फ चुनाव नहीं होता।
खुद को देशभक्त कहने वाले लोग कहते है कि देश से सवाल नहीं कर सकते? पर क्यों नहीं कर सकते? हमारा देश है इसके बेहतरी के लिए सवाल करना चाहिए। तभी तो देश परफेक्ट होगा। क्योंकि कहते है न कि कोई चीज खुद में परफेक्ट नहीं होता, उसको परफेक्ट बनाना पड़ता है। इसीलिए, कोई देश ख़ुद में परफेक्ट नहीं होता, उसको परफेक्ट बनाना पड़ता है।
अगर हम विश्व कल्याण की बात करते है। तो इसका ये मतलब तो नहीं है कि मैं अपने देश के कल्याण की बात नहीं कर रहा हूँ।। विश्व मतलब, भारत भी और नेपाल भी और पाकिस्तान भी। हाँ, जानते है कि पाकिस्तान के साथ राजीनीतिक स्तर पर हमारे संबंध अच्छे नहीं है। पर अच्छा तो बनाया जा सकता है न। तो कोशिश क्यों नहीं करना। नेता से नहीं होगा। पर देश के जनता से तो होगा। देश की जनता क्यों नहीं इसके लिए आवाज़ उठाती है। और ऐसा क्यों होता है कि जो आवाज़ उठाता भी उसको देशद्रोही बता दिया जाता है? लोगों से देश बनता है ना कि देश से लोग। इसीलिए, देश मे रहने वाले लोगों को पहले सुनना चाहिए। देश खुद ब ख़ुद परफेक्ट हो जाएगा। हमें अपनी सभ्यता को क्यों भूलना है। हमें सर्वे भवन्तु सुखिनः और वसुधैव कुटुम्बकम् वाली परंपरा को क्यों नहीं अपना सकते? जिसमें पूरे विश्व को ही एक परिवार माना जाता है।।
धरती पर रहने वाले सभी को ज़िंदाबाद।।
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