Belt and Road Initiative And Indian perceptions
“वन बेल्ट वन रोड” और भारतीय दृष्टिकोण
नवीन कुमार
(राजनीतिक विज्ञान विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय)
सारांश
यह शोध पत्र चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना “ बेल्ट और रोड”(BRI Initiative) पहल की मूलभूत विचारों की तथा भारतीय दृष्टिकोण की चर्चा करता है। “ बेल्ट और रोड” पहल के तहत दो योजनाओं की बात की जा रही हैं। (क) रेशम सड़क आर्थिक पट्टी( SREB) जो चीन को मध्य एशिया से होते हुए मध्य-पूर्व और यूरोप को जोड़ेगा। (ख) 21वीं सदी की समुद्री रेशम मार्ग(MSR) जो कि चीन के ‘Fuzhou’ शहर से शुरू होकर मलेशिया, हिन्द महासागर होते हुए मध्य-पूर्व देशों को जोड़ते हुए अफ्रीका को छूते हुए यूरोप तक जाता है। यह परियोजना एशिया, यूरोप और अफ्रीका को राजनीतिक और आर्थिक रूप से प्रभावित कर सकता है। हिन्द महासागर में स्थित भारत को यह परियोजना अनेक स्तर पर प्रभावित कर सकता हैं। भारत की उभरती अर्थव्यवस्था दक्षिण एशिया के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा हैं। यह शोध पत्र “बेल्ट और रोड” पहल पर भारतीय धारणा को आधिकारिक दृष्टि से अलग हट कर समझने की कोशिश की गई है। इस शोध पत्र में ‘BRI’ पहल से भारत को हो सकने वाले आर्थिक, सामरिक और कूटनीतिक फायदों पर भी प्रकाश डालने के कोशिश की गई हैं।
शब्दावली: रेशम मार्ग, समुद्री रेशम मार्ग, Xiplomacy, भारतीय विदेश नीति, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा, व्यापार, भारतीय बेरोजगारी, संप्रभुता, बीसीआईएम-ईसी, स्प्रिंग ऑफ पर्ल्स, एशियाई अवसंरचना विकास बैंक, और भारतीय अर्थव्यवस्था।
प्रस्तावना
21वीं सदी की सबसे बड़ी परियोजना में शामिल “बीआरआई” पहल विश्व की राजनीति को प्रभावित करने की पूरी ताक़त रख रहा है। कहा जा रहा है कि यह परियोजना विश्व की आर्थिक क्षेत्र में एक “गेम चेंजर” की भूमिका सकता हैं। बीआरआई को सामान्यतः “वन बेल्ट वन रोड” परियोजना कहा जा रहा हैं। बीआरआई चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना में दो योजनाओं को शामिल किया गया है। विश्व की 55 प्रतिशत सकल राष्ट्रीय उत्पाद (जीएनपी) , 70 प्रतिशत जनसंख्या तथा 75 प्रतिशत ज्ञात ऊर्जा भंडारों को समेटने की क्षमता वाली यह योजना वास्तव में चीन को एक महाशक्ति बनाने के लिए चीन द्वारा शुरू किया गया है। इससे चीन व्यापार को बड़े स्तर पर उछाल मिलेगी। जिससे चीन को अपने सस्ते समान को बेचने के लिए बड़े स्तर पर बाज़ार की उपलब्धता बढ़ जाएगी। बीआरआई की शुरुआत कजाखस्तान में सितंबर 2013 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के भाषण से माना जाता हैं जब शी जिनपिंग ने “ रेशम सड़क आर्थिक पट्टी” (SREB) की बात कही।( MOFA PRS 2013)1 उसके बाद उसी साल के अक्टूबर में राष्ट्रपति ने इंडोनेशिया के संसद को सम्बोधित करते समय बीआरआई की दूसरी योजना “ समुद्री रेशम मार्ग” की घोषणा की।(Wu और Zhang 2013)।2 चीन की इस महत्वाकांक्षी परियोजना में आर्कटिक क्षेत्र भी शामिल होगा ताकि समुंदरी व्यवसाय पर नियंत्रण बेहतर बना रहे हैं। चीन की ऊर्जा की मांग का 70 प्रतिशत हिस्सा समुंदरी आयात से पूरा होता हैं। (ऋतिका पस्सी 2018)।
इस परियोजना को लेकर भारतीय अधिकारियों का कहना है कि यह चीन की उस महत्वाकांक्षा को दिखाता है जिसमें वह विश्व में एक नई किस्म की उपनिवेशवाद को बढ़ावा दे रहा है। भारत अभी तक इस परियोजना का हिस्सा नहीं बना है, भारत का कहना है चीन और पाकिस्तान की एक परियोजना “ चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा”( CPEC) भारत की सम्प्रभुता को ध्यान में रख कर नहीं बनाया जा रहा है। सीपीईसी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है जिस पर भारत का मानना है यह भारत की सम्प्रभुता पर सवाल खड़ा कर रहा हैं।
ये तो भारत के तरफ से आधिकारिक रूप से बताया गया है कि इस परियोजना में भारत शामिल क्यों नहीं हो रहा है। लेकिन, हम ने यह जानने की कोशिश की है कि अगर भारत इस परियोजना में शामिल या इसका हिस्सा बनाता है तो उसको कितना फ़ायदा हो सकता हे। भारत को अभी बड़े स्तर पर निवेश की आवश्यकता है, जो बड़े स्तर पर भारतीय युवाओं को रोजगार दे सके है साथ ही भारत की अवसंरचना का भी विकास हो सके। अगर, भारत इस परियोजना का हिस्सा बनता है तो उसके अर्थव्यवस्था को एक तेज़ी देने का कारण बन सकता हैं। साथ ही यह भारत की अर्थव्यवस्था को मध्य एशिया के देशों के साथ जोड़ सकता हैं। यह शोध भारत के द्वारा आधिकारिक रूप से दिए बयान से इतर अन्य दृष्टिकोण से इसको समझने का प्रयास करता हैं। और इस पर हो रहे विवाद से इतर इससे भारत को हो सकने वाले आर्थिक, सामरिक, और चीनी संबंध में सुधार की बात करता हैं। मुख्य रूप से देख जाए तो इस शोध-पत्र को पाँच भागों में बांटा गया है। पहले भाग में ओबीओआर का परिचय दिया गया है। दूसरे भाग में ओबीओआर को लेकर चीनी सरकार के तर्क पर प्रकाश डाला गया हैं। तीसरे भाग में ओबीओआर पर भारतीय सरकार की आपत्ति को बताया गया हैं। चौथे भाग में हमने ओबीओआर के उस पक्ष को बताया है जिससे भारत को फ़ायदा हो सकता है। वहीं अंतिम भाग में हमने इस शोध-शोध-पत्र के निष्कर्ष को बताया है।
‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना क्या हैं?
“वन बेल्ट वन रोड” परियोजना चीन की एक महत्वाकांक्षी परियोजना हैं। इसे चीन सरकार द्वारा “बेल्ट और रोड पहल” कहा जा रहा हैं। यह स्पष्ट है कि BRI एक महत्वाकांक्षी प्रयास है चीन से जुड़े संबंधों के एक ऐसे जाल को संगठित करने और बनाने का जो पहले नहीं देखा गया है। चीन ने अपने प्राचीन रेशम मार्ग और समुद्री रेशम मार्ग को पुनर्जीवित करने के लिए मूल संरचना परियोजनाओं का नेटवर्क जारी किया है जो एशिया से यूरोप तक फैला हुआ है और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में फैला हुआ है।3 बीआरआई को सड़क मार्ग, रेलवे और पत्तन जैसे मूल संरचना परियोजनाओं को व्यापार और विकास के मामले में सस्ता बनाने के लिए तैयार किया गया है। राष्ट्रपति जिनपिंग का कहना है कि बीआरआई के भागीदार देशों का एकीकरण न केवल आर्थिक रूप से बल्कि सांस्कृतिक तौर पर भी बेहतर है जो दो राजनयिक कार्यों पर आधारित है।4 चीन का दावा है कि बीआरआई का एकमात्र उद्देश्य आर्थिक विकास सुनिश्चित करना है और इसका कोई अनियमित राजनीतिक उद्देश्य नहीं है। बीआरआई कि शुरुआत सितंबर 2013 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के कजाखस्तान दौरे के समय हुईं। जब उन्होंने अपने एक भाषण में “ रेशम सड़क आर्थिक पट्टी” की बात कही।(MOFA PRS 2013) तथा अक्टूबर 2013 में ही शी जिनपिंग ने इंडोनेशिया के संसद को सम्बोधित करते समय “21वीं सदी की समुद्री रेशम मार्ग” की घोषणा की।(Wu और Zhang 2013)। बीआरआई के तहत छः आर्थिक गलियारों का निर्माण किया जाएगा, जो पूरी तरह से ज़मीन पर होगा। इसके अलावा, एक समुद्री रेशम मार्ग का निर्माण किया जाएगा, जो कि पूरी तरह से जलमार्ग होगा। चीन के अनुसार इस परियोजना के द्वारा हाईवे, रेल मार्ग, बंदरगाहों, गैस पाइपलाइनें और अन्य अवसंरचना का निर्माण किया जायेगा।
यह स्पष्ट होता जा रहा है कि चीन का महत्वाकांक्षी वन बेल्ट वन सड़क (ओबीओआर) या बेल्ट और सड़क पहल (बीआरआई) एशिया और अफ्रीका को विभिन्न परिवहन गलियारों के नेटवर्क के माध्यम से यूरोप के साथ जोड़ने से पूरे यूरेशियन क्षेत्र और उससे आगे के भौगोलिक-विज्ञान और भू-राजनीति को मौलिक रूप से नया आकार दे सकते हैं। भारत में इन घटनाओं का बड़ा महत्व है। प्रस्तावित छह अंतरराष्ट्रीय गलियारों में से एक अर्थात न्यू यूरेशिया लैंड ब्रिज, चीन-मध्य एशिया-पश्चिम एशिया आर्थिक गलियारे, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी), और बांग्लादेश-चीन भारत-म्यांमार आर्थिक सहयोग (बीसीआईएम), इन क्षेत्रों से भारत के आर्थिक और सामरिक संबंध सीधे प्रभावित होता हैं।5
ख़र्च और ओबीओआर:-
ओबीओआर परियोजना की ख़र्च की बात करें तो कुछ एक अकादमिकों का मानना है कि इस पूरे परियोजना में क़रीब $1.5 ट्रिलियन का ख़र्चा हो सकता हैं। मॉर्गेन स्टेनली के अनुसार, चीन द्वारा इस बीआरआई पहल पर 2017 तक $1.2-1.3 ट्रिलियन निवेश कर सकता हैं। इनका कहना है कि चीन अभी तक इस पर $200 बिलियन ख़र्च कर चुका हैं।6
इस परियोजना के लिए होने वाले निवेश के अलग-अलग स्रोत हैं। जैसे, एशिया इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक(AIIB), चीन विकास बैंक(CDB), सिल्क रोड फण्ड(40 बिलियन अमेरिकी डॉलर), और भागीदार देशों के साथ समझौता करके इस परियोजना को पूरा किया जायेगा।
ओबीओआर और चीन:-
ओबीओआर चीन की एक महत्वाकांक्षी परियोजना हैं। इस परियोजना पर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का कहना है कि “बेल्ट और सड़क पहल का उद्देश्य प्राचीन सिल्क रोड से प्रेरणा प्राप्त करना है। और इसका लक्ष्य पूरे विश्व में शांति और विकास के लिए लोगों के साझा सपने को साकार करना है। पूर्व की ओर से ज्ञान प्राप्त करते हुए, चीन एक ऐसी योजना को ला रहा हैं जो विश्व को समान समृद्धि और विकास उपलब्ध कराती है।“7
बीजिंग की अरबों डॉलर वाली बेल्ट और सड़क पहल (बीआरआई) को चीनी मार्शल प्लान कहा गया है जो कि वैश्विक प्रभुत्व के लिए एक राज्य समर्थित अभियान, एक प्रोत्साहन पैकेज जो कि धीमी अर्थव्यवस्था के लिए एक प्रोत्साहन पैकेज है और जो पहले से हो रहा है उसके लिए एक व्यापक विपणन अभियान पूरी दुनिया में चीनी निवेश को बढ़ावा देगा। पांच वर्षों के बाद राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने एशिया, अफ्रीका और यूरोप से जुड़ने की अपनी महान योजना की घोषणा की, इस पहल में विदेशों में चीनी संबंधों के लगभग सभी पहलुओं का वर्णन करने के लिए एक विस्तृत नारा बन गया है।8 चीन के द्वारा इस परियोजना को शुरू करने के पीछे कई करण बताये जाते हैं। जैसे, चीन इस परियोजना के माध्यम से अपने प्राचीन इतिहास प्राचीन रेशम मार्ग के बारे में दुनिया को बताना चाहता हैं। इसके अलावा अपने सांस्कृतिक विरासत को पुनर्जीवित करना चाहता है। चीन अपने व्यापार को विश्व के अन्य देशों से जोड़ने के लिए भी ओबीओआर का इस्तेमाल करना चाहता है। यह पहल विभिन्न देशों के बीच नीति संवाद, ढांचागत संपर्क, शुल्क में कटौती, वित्तीय सहायता और जन-साधारण के आदान-प्रदान के लिए भी इस्तेमाल किया जायेगा( Golley एंड Ingle 2018)9
चीन के बीआरआई पहल के अंतर्गत आर्कटिक क्षेत्र पर चीन के वाईट पेपर में पोलर सिल्क रोड की बात की गई हैं। बेल्ट और रोड पहल शी जिनपिंग की कूटनीति या “Xiplomacy” को आगे बढ़ाने के काफ़ी कारगर है। इस महत्वाकांक्षी परियोजना में आर्कटिक क्षेत्र भी शामिल होगा ताकि चीन समुद्री व्यवस्था पर अपना नियंत्रण बेहतर बना सके। क्योंकि, चीन की ऊर्जा की माँग का 70 फीसद हिस्सा समुद्री आयात से पूरा होता है।10 इस परियोजना के द्वारा चीन अपनी ऊर्जा की कमी को पूरा करना चाहता है। इस परियोजना से चीन को मध्य एशिया और रूस से सस्ते दामों पर गैस और तेल प्राप्त करना चाहता है। चीन इस परियोजना को अपने ने देश की अस्थायी मैनुफैक्चरिंग सेक्टर को स्थाई बनाना चाहता है। इसके अलावा, चीन अपनी अर्थव्यवस्था को विश्व के अन्य अर्थव्यवस्था से जोड़ना चाहता है। और साथ ही अल्प विकसित देशों के अर्थव्यवस्था को टैपिंग करना चाहता हैं। चीनी सरकार और मीडिया द्वारा इस परियोजना से होने वाले लाभ को विश्व के स्तर पर सभी सम्मेलन में अन्य देशों को बता रहे हैं। इसको लेकर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2017 में चीन में एक सम्मेलन आयोजित किया था जिसमें विश्व के 29 देशों ने भाग लिया था।
मई में अपने बेल्ट और सड़क मंच के भाषण में, राष्ट्रपति ने बीआरआई के वैश्विक उद्देश्यों को दोहराया: शांति, समृद्धि, सहयोग, खुलेपन, समावेशिता और आपसी लाभ। उन्होंने उस रचना का आह्वान किया जो नव-निर्माण और विकास में सहायक हो। अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश नियमों की एक उचित, न्यायसंगत और पारदर्शी प्रणाली की स्थापना; और संसाधनों जैसे श्रम, पूंजी और ऊर्जा के सुव्यवस्थित प्रवाह और आवंटन तथा साथ ही पूर्ण बाजार एकीकरण को सुकर बनाना।11 अक्टूबर की उन्नीसवीं पार्टी कांग्रेस में इन ढीले-ढाले विचारों को चीनी संविधान में समाहित किया गया था, जो अब चीन में 'विचार-विमर्श और सहयोग के माध्यम से साझा विकास प्राप्त करने और बेल्ट और सड़क पहल करने के सिद्धांत का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध है।'12 हालांकि चीन का संविधान पश्चिमी देशों के मुकाबले थोड़ा अधिक लचीला है परंतु यह स्पष्ट है कि चीन का सभी मामले उस समय है जब चीन BRI के द्वारा -एक दीर्घकालीन विदेश नीति जो चीन (चीनी कम्युनिस्ट पार्टी) को मजबूत बनाने के लिए काम कर रही हैं। घरेलू रूप से, बीआरआई का उद्देश्य चीन के आर्थिक विकास को बनाए रखना है। जीडीपी की वृद्धि 2012 में 7.7 प्रतिशत से घटकर 2017 में 6.9 प्रतिशत हो गई है। मंदी के लिए कोई एक भी कारण जिम्मेदार नहीं है-और वास्तव में, जबकि 6.9 प्रतिशत अभी भी विश्वव्यापी नजरिए से असाधारण ऊंचाई पर हैं-चीन के श्रम सघन उत्पादन वस्तुओं के निर्यात के पिछले विकास मॉडल ने अपना काम पहले ही पूरा कर लिया है, इसके दो स्पष्ट संकेत हैं चीन के कई उद्योगों, जिनमें कोयला, इस्पात और सीमेंट शामिल हैं, के अत्यधिक विदेशी मुद्रा भंडार (2014 में संयुक्त राष्ट्र से अधिक 4 ट्रिलियन शेर में उछाल पर था, लेकिन यह तब से गिरावट पर है) के अत्यधिक उत्पादन के कारण है। बीआरआई ने इन दोनों समस्याओं को दूर करने का वादा किया है और आर्थिक विकास को तेजी से बदलने का वादा किया है और चीनी वस्तुओं के लिए नए निर्यात बाजारों में, जिनमें कोयला, इस्पात और सीमेंट और चीनी निवेश के नए गंतव्यों का समावेश होगा। यह वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए विकास के नए स्रोत भी उपलब्ध कराएगा, जिससे चीन के घरेलू विकास को लगातार बढ़ावा मिलेगा।13
मुख्य रूप से देखा जाए तो बीआरआई को शुरू करने के पीछे चीन की अपनी रणनीति हैं। सच तो यह है कि चीन को बांधने का समय अब दो बातों से नहीं जुड़ा हुआ है। सबसे पहले, चीन की पिछले दो दशकों की तीव्र आर्थिक विकास धीमी गति से चल रही है। बीआरआई विकास को पुनर्जीवित करने, ऊर्जा की कमजोरी को फिर से विकसित करने तथा वैश्विक उपस्थिति और प्रतिष्ठा को बढ़ाने का अवसर है जबकि चीन अपनी प्रारंभिक बीआरआई परियोजनाओं के कई स्वयं कोष तैयार करने की स्थिति में है। यह गैर सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों की जीवन रेखा भी है। 2016 से अब तक 83 प्रतिशत ऋण राज्य के स्वामित्व वाले बैंकों से प्राप्त किए गए हैं। यह आंकड़ा 2013 से उल्टा है जब 57 प्रतिशत ऋण निजी कंपनियों के पास जाते थे।14 इसीलिए, चीनी सरकार द्वारा यह महत्वाकांक्षी परियोजना को शुरू किया गया हैं।
बीआरआई और भारतीय आपत्तियां
मुख्य रूप से देखा जाए तो भारत सरकार कभी भी बीआरआई पहल का हिस्सा नहीं बनेगा। इसके अपने अलग कारण हो सकता है। और हम इस भाग में उसी भारतीय आपत्तियों को समझने का प्रयास किये है जो भारत सरकार बीआरआई पहल का हिस्सा न बनने के लिए देते रहते है। भारतीय सरकार की कई आपत्तियाँ इस परियोजना को लेकर हैं जिसको हमने निम्न भागों में बांट कर समझने का प्रयास किया हैं-
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा:- भारत सरकार द्वारा चीन की इस महत्वाकांक्षी परियोजना में शामिल न होने का मुख्य कारण चीन द्वारा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होते हुए “चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा” का निर्माण करना है। भारत सरकार का कहना है कि ये परियोजना में भारत की आंतरिक सम्प्रभुता को अनदेखा किया गया है। आधिकारिक प्रवक्ता ने ओबीओआर/बीआरआई पर चीन के साथ संभावित सहयोग के बारे में मीडिया रिपोर्टों पर एक प्रश्न के उत्तर में कहा, "हमने कुछ मीडिया रिपोर्ट देखी है जो चीन के साथ 'एक बेल्ट वन रोड' (ओबीओआर)/'बेल्ट और सड़क पहल' (बीआरआई) में संभावित सहयोग की ओर संकेत करती है। ओबीओआर/बीआरआई पर हमारी स्थिति स्पष्ट है और कोई बदलाव नहीं है तथाकथित 'चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर' भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करती है। कोई भी देश ऐसी परियोजना को स्वीकार नहीं कर सकता है जिसमें संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता पर उसके मूल सरोकारों की उपेक्षा की जाए। हम इस दृढ़ विश्वास के साथ हैं कि कनेक्टिविटी पहल सार्वभौमिक मान्यता प्राप्त अंतरराष्ट्रीय मानकों, सुशासन, कानून का शासन, उन्मुखता, पारदर्शिता और समानता पर आधारित होनी चाहिए तथा इस प्रकार अपनाया जाना चाहिए जिससे संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान हो।"15
स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स:- ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ को “मोतियों की माला” कहते हैं। भारतीय सरकार द्वारा इस परियोजना को 21वीं सदी की समुद्री रेशम मार्ग को “मोतियों की माला” कह कर सम्बोधित किया हैं। खासकर यह शब्द भारतीय अकादमियों द्वारा प्रचारित किया गया है। उनका कहना है कि चीनी सरकार समुद्री रेशम मार्ग के द्वारा भारत को हिन्द महासागर में घेरने के लिए मलेशिया (कुआं लालम्पुर बंदरगाह), म्यांमार (सितवे बंदरगाह), बांग्लादेश(चिटगांव बंदरगाह), श्रीलंका(हम्बनटोटा बंदरगाह), मालदीव(माले बंदरगाह), और पाकिस्तान(ग्वादर बंदरगाह) को पुनः विकसित कर रहा है। नक्शा में देखने से पता चलता है कि चीनी सरकार भारत को हिन्द महासागर में घेरना चाहती हैं। ऐसा भारत के सरकार का कहना हैं।
हिंद महासागर प्रभुत्व:- भारत के सरकार को लगता है कि चीन अपनी इस महत्वाकांक्षी परियोजना के द्वारा हिन्द महासागर में अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता हैं।
इसके अलावा, भारतीय सरकार का कहना है कि चीन ने अभी तक इस परियोजना से जुड़े पूरी जानकारी सबके सामने नहीं रखा है। देशों को यह नहीं पता है कि इस परियोजना के द्वारा चीन आख़िर करना क्या चाहता हैं? यह राष्ट्रीय चीनी पहल है। चीन ने उसे खोज निकाला तो चीनी ने उसे ब्लू प्रिंट बना दिया और राष्ट्रीय हित के लिए एक पहल तैयार की गई। यह खरीदने के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं है… अगर यह कुछ है, जिस पर वे एक बड़ी खरीद में करना चाहते हैं, तो उन्हें बड़ी चर्चा करने की जरूरत है, और जो ऐसा नहीं हुआ है।(जयशंकर, 2015)16 इस परियोजना को लेकर भारतीय विदेश मंत्रालय के मीडिया ब्रीफिंग में भारत को भौतिक संपर्क बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय की इच्छा के साथ है और उसका मानना है कि इससे सभी को समान और संतुलित तरीके से और अधिक आर्थिक लाभ मिलने चाहिए। हम अपने नजदीकी तथा निकट के इलाकों में भौतिक तथा डिजिटल संबद्धता के समर्थन में अनेक देशों और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ कार्य कर रहे हैं। संयोजकता का विस्तार और सुदृढ़ीकरण भारत के आर्थिक और राजनयिक प्रयासों का अभिन्न अंग है। ‘अधिनियम पूर्व’(Act East) नीति के तहत, हम त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजना पर काम कर रहे हैं; हमारे ‘पड़ोसी पहले' नीति के तहत हम म्यांमार और बांग्लादेश के साथ बहुमॉडल संबंध विकसित कर रहे हैं। अपनी पश्चिम यात्रा की रणनीति में हम ईरान के साथ चौबहार बंदरगाह पर, ईरान तथा मध्य एशिया के अन्य साथियों के साथ अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन के गलियारे में शामिल हैं। बिबिआईएन पहल का उद्देश्य दक्षिण एशियाई क्षेत्र में रसद क्षमता बढ़ाने के लिए है। हम भी टीआईआर सम्मेलन में शामिल होने पर विचार कर रहे हैं।17
ओबीओआर और भारत को होने वाला लाभ:-
कई लेख पढ़ने के बाद मुझे लगता है कि ओबीओआर का फ़ायदा सिर्फ चीन को नहीं होने वाला है। अगर, भारत इस परियोजना का हिस्सा बनता हैं तो उसको इस परियोजना से कई फायदे हो सकते है। जिसमें भारत के अर्थव्यवस्था को एक तेज उछाल दे सकता है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था को एक तेज उछाल चाहिए, जो उसको ओबीओआर के इस परियोजना से मिल सकता हैं। चीन के करोड़ों डॉलर के OBOR पहल में शामिल होने के भारत के लिए लाभ स्पष्ट है। और आर्थिक तर्क अत्यावश्यक है। 2016 में 70.08 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार के साथ, चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बना हुआ है। पिछले साल भी भारत में चीनी निवेश एक अरब डॉलर के करीब पहुंच गया। इसकी तुलना में पाकिस्तान के साथ चीन के आर्थिक संबंध कमजोर हो गए हैं तथा पिछले वर्ष 13.77 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार स्तर तक पहुंच गए हैं।(पंत 2017)18 भारत के पास म्यांमार की कलादान परियोजना, ईरान के साथ चबहार बंदरगाह परियोजना और रूस के साथ उत्तर दक्षिण कॉरिडोर जैसे कनेक्टिविटी प्रयासों का अपना सेट है, जिसे संभावित रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है। प्रस्तावित 7200 कि. मी. अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे एक जहाज, रेल और सड़क परिवहन प्रणाली है जो हिंद महासागर और फारस की खाड़ी को ईरान के रास्ते से लेकर रूस और उत्तरी यूरोप तक कैस्पियन सागर से जोड़ती है। भारत और जापानी सरकारें एशिया वृद्धि गलियारे के विकास के लिए एक 'संकल्पना दस्तावेज' पर काम कर रही हैं, जिसका मुख्य उद्देश्य अफ्रीका में निवेश और वृद्धि को प्रेरित करना है। और कुछ भाग महाद्वीप में चीन की बढ़ती उपस्थिति की प्रतिक्रिया के रूप में।
देखा जाये तो बीआरआई पहल से भारत की बेरोजगारी दर भी कम हो सकता है। भारत में अभी रिकॉर्ड 45 साल में सबसे ज़्यादा बेरोजगारी दर है। इसके लिए भारत की योजनाएं अभी तक इस बेरोजगारी को ख़त्म करने में असफल रही हैं। भारत में अभी 6.5 प्रतिशत बेरोजगारी दर हैं, जिसको भारतीय सरकार द्वारा दूर करना मुश्किल लग रहा है। भारत को एक ऐसे अर्थव्यवस्था की जरूरत है जो नौकरी देने वाली हो। और मुझे लगता है अगर भारत इस परियोजना का हिस्सा बनता है तो उसके बेरोजगारी की समस्या थोड़ा बहुत कम हो सकता है। क्योंकि, इस परियोजना के तहत अनेक देशों में अवसंरचना का निर्माण किया जायेगा। जिसमें मैनपॉवर की आवश्यकता होगी। जो कि भारत जैसा देश उपलब्ध करा सकता है। हालांकि चीन द्वारा पदोन्नत, ओबीओआर पाठ्यक्रम और सामग्री में एक बदलाव के लिए खुला है। अतः भारतीय संबंधों से भारतीय आवश्यकताओं तथा हितों से मेल खाने के लिए ओबीओआर को आकार देने का भी अवसर मिलता है। यह देखते हुए कि-धारा-के- धारा छूट रही है, भारत में भाग लेने की इच्छा और इस प्रकार और अधिक आर्थिक व्यवहार्यता पैदा करने से चीनी राज्य के महत्वपूर्ण वर्गों के भीतर बहुत सद्भावना पैदा होगी। इस सद्भावना से अन्य जगहों पर राजनीति पर भी प्रभाव पड़ सकता है, जिसमें परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में भारतीय सदस्यता शामिल है और निजी तथा सार्वजनिक रूप से आतंकवाद संबंधी पाकिस्तानी राज्य अभिनेताओं पर दबाव बढ़ाने की इच्छा भी शामिल है।19 इसके अलावा, भारत को अनेक इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता है जो इस परियोजना से पूरा किया जा सकता है। भारत समुद्री रेशम मार्ग का हिस्सा बन कर अपने पड़ोसी देश श्रीलंका, बांग्लादेश, मलेशिया और म्यांमार जैसे देशों के साथ बेहतर संबंध स्थापित किया जा सकता और या और मजबूत बनाया जा सकता है। क्योंकि, वर्तमान में बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार चीन के तरफ आकर्षित हो रहा है। यहाँ तक कि नेपाल भी। अतः जरूरत है कि इनके साथ बेहतर और मजबूत संबंध स्थापित किया जाए।
निष्कर्ष
उपयुक्त बातों से स्पष्ट होता है कि चीन द्वारा शुरू किया गया महत्वाकांक्षी परियोजना “बीआरआई” पहल विश्व की राजनीति को बदलने की क्षमता रखता है। यह परियोजना एक कोरियाई स्कॉलर Jae-Ho-chung के अनुसार, जब यह परियोजना पूरा होगा तब इसमें विश्व के 60 से अधिक देश, विश्व जी दो-तिहाई जनसंख्या, विश्व के कुल जीडीपी का 55 प्रतिशत और 75 प्रतिशत विश्व ऊर्जा सेवा इसमें शामिल होगा।20 इस परियोजना की शुरुआत उस समय की जा रही है जब चीन और अमेरिका के बीच व्यापार युद्ध चल रहा है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प “अमेरिका पहले” की नीति अपना रहा है। चीन की इस महत्वाकांक्षी परियोजना का हिस्सा क़रीब 60 देश बन चुके है। 2017 में बीजिंग में हुई इसके सम्मेलन में 29 देशों ने भाग लिया था ,जिसमें शी जिनपिंग ने बीआरआई पहल के बारे में विश्व को बताया। उससे उनके बीआरआई पहल एक छोटे-छोटे योजना का हिस्सा था। लेकिन, 2017 में आधिकारिक रूप से बीआरआई पहल के तहत दो परियोजना की बात कही गई। जिसमें, प्राचीन रेशम मार्ग को नए तरीक़े से विकसित करना शामिल है और 21वीं सदी का समुद्री रेशम मार्ग का निर्माण। जो चीन को हिन्द महासागर के रास्ते मध्य-पूर्व भाग, अफ्रीका और यूरोप से जोड़ेगा। देखा जाए तो चीन ने इस परियोजना की शुरुआत 2013 में ही कर दिया था। लेकिन, इसकी अन्य जानकारी चीन द्वारा 2017 में विश्व के अन्य देशों से साझा किया गया।
2017 में हुए सम्मेलन में भारत को इसमें शामिल होने के लिये निमंत्रण दिया गया था। लेकिन, भारत ने क्षेत्रीय अखण्डता का उल्लंघन बोल कर इस सम्मेलन में शामिल होने मना कर दिया था। भारत की आपत्ति “चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर” को लेकर है। क्योंकि, यह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है।
• लेकिन, मेरा इससे इतर मानना है कि अगर भारत इस परियोजना का हिस्सा बनता है तो उसको कई तरह से फायदा हो सकता है। भारत को इस प्रतियोगी समय में अपनी अर्थव्यवस्था को पड़ोसी देशों के साथ मिला कर रखने में ही फ़ायदा है। क्योंकि, वर्तमान में चीन और अमेरिका के बीच व्यापार युद्ध चल रहा है। वहीं जीडीपी विकास दर पिछले दो दशक के कम स्तर पर है। और भारत की जीडीपी विकास दर तेजी से आगे बढ़ रही है। अतः भारत को जरूरत है कि भारत उसी के परियोजना में शामिल होकर अपना दबदबा बनाएं। वैसे देख जाए तो भारत वैसे भी इस परियोजना का हिस्सा बन गया है। क्योंकि, इस परियोजना को निवेश करने वाली एशिया अवसंरचना विकास बैंक का भारत सदस्य है। इस बैंक में भारत ही हिस्सेदारी चीन के बाद दूसरे नंबर की है। उसके अलावा भारत के ब्रिक्स सदस्य देश भी इस परियोजना का हिस्सा बन चुके। भारत इस परियोजना का हिस्सा बन कर चीन के साथ अपने संबंध को सुधार सकता है। क्योंकि, वर्तमान में चीन पाकिस्तान को हर सम्भव मदद उपलब्ध करा रहा है। भारत को जरूरत है कि वह चीन के साथ अपने संबंध को बेहतर बना के चीन के द्वारा पाकिस्तान पर दबाब बनाने का काम करें। जिससे आतंकवाद की समस्या से समाधान मिल सके। इसके अलावा, भारत चीन से बेहतर संबंध बना के परमाणु आपूर्ति कर्ता समूह का सदस्यता का समर्थन करवा सकता है। बीआरआई पहल सामरिक रूप से ही नहीं बल्कि आर्थिक रूप से भी भारत के लिए फायदेमंद हो सकता है। भारत इस परियोजना का हिस्सा बन के अपने अर्थव्यवस्था को तेज विकास दर की ओर ले जा सकता है। साथ ही, भारत अपनी अर्थव्यवस्था को मध्य एशिया के देशों के साथ जोड़ सकता है। वहां से तेल, गैस भी प्राप्त कर सकता है। क्योंकि, भारत में तेल-गैस की मांग बढ़ती जा रही है। इस मांग को पूरा करने के लिए भारत को बीआरआई पहल का हिस्सा बनना पड़ेगा।
सन्दर्भ सूची
1.Ministry of Foreign Affairs, the People’s Republic of China. 2013. „President Xi Jinping
Delivers Important Speech and Proposes to Build a Silk Road Economic Belt with Central
Asian Countries‟, 7 September,
http://www.fmprc.gov.cn/mfa_eng/topics_665678/xjpfwzysiesgjtfhshzzfh_665686/t1076334.shtm
2. Wu Jiao and Zhang Yunbi. 2013. „Xi in call for building of new “maritime silk road”‟, China
Daily, 4 October,
http://www.chinadaily.com.cn/china/2013xiapec/2013-10/04/content_17008913.htm
3.Sachdeva, Gulshan(2018) “India Perceptions of the Chinese Belt and Road initiative” In ‘International Studies’ Sage Publication; JNU, Pp.-286
4. Rosita Dellious,”Silk Roads of the Twenty-first Century: The cultural dimensions”, Widely online Library, March, 2012
https://onlinelibrary.wiley.com/doi/full/10.1002/app5.172
5. Sachdeva, Gulshan(2018) “India Perceptions of the Chinese Belt and Road initiative” In ‘International Studies’ Sage Publication; JNU, Pp.--286
6. Chatzky & McBride( 2019), “Chinas Massive Belt and Road Initiative” May 21
Http://www.cfr.org/background/Chinas-massive-belt-and-road-initiative
7. Golley and Ingle(2018) ‘The Belt And Road Initiative: How to win friends and Influence people', In “Prosperity” ANU PRESS, Pp.-47
8.Lily Kuo and Niko Kommanda,( 2018) ‘What China Belt Road Initiative Silk Road Explainer', 30 July. http://www.theguardian.com/cities/ng-interactive/2018/Jull/30/what-china-belt-road-initiative-silk-explainer
9. Golley and Ingle(2018) ‘The Belt And Road Initiative: How to win friends and Influence people', In “Prosperity” ANU PRESS, Pp.-47
10.Rotika Passi(2018) ‘ एक बेल्ट, एक रोड और अब एक घेरा’ 14 March https://www.orfonline.org/hindi/research/%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%9F-%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A1/?amp
11. Golley and Ingle(2018) ‘The Belt And Road Initiative: How to win friends and Influence people', In “Prosperity” ANU PRESS, Pp.-52
12. Ibid., Pp.-52.
13. Ibid., Pp.-52.
14. Monkey, Terry(2019) ‘ The Belt and Road Initiative', Strategic Studies Quarterly , Vol. 13, No. 3 , Air University Press, pp.-55
15. Ministry of External Affairs, Government of India, 2018 “ Official Spokesperson's response to a query on reports regarding possible cooperation with China on OBOR/BRI, media briefing, 5 April.
https://www.mea.gov.in/media-briefings.htm?dtl/29768/Official+Spokespersons+response+to+a+query+on+media+reports+regarding+possible+cooperation+with+China+on+OBORBRI
16. Sachdeva, Gulshan(2018) “India Perceptions of the Chinese Belt and Road initiative” In ‘International Studies’ Sage Publication; JNU, Pp.—288
17. Ministry of External Affairs, Government of India, 2017. ‘Official Spokesperson's response to a query on participation of India in OBOR/BRI Forum',
https://www.mea.gov.in/media-briefings.htm?dtl/28463/Official+Spokespersons+response+to+a+query+on+media+reports+regarding+possible+cooperation+with+China+on+OBORBRI
18. Pant, Harsh ,V.(2017) ‘If doesn’t become more transparent about OBOR, India won’t be the only one opposing it', 01 July. https://amp.scroll.in/article/841479/if-china-doesn't-become-more-transparent-about-obor-india-wont-be-the-only-one-opposing-it
19. Bilal, Hassan. Saadat(2017) ‘India has nothing to fear from Chinese belt and road', 11 Jan.
Http://thediplomat.com/2017/01/India-has-nothing-to-fear-from-Chinese-belt-and-road
20. Ibid..
पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा। आपने इस लेख में स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स का जिक्र किया है जिसके मुताबिक भारत को चीन इस विशाल समुद्री रेशम मार्ग के द्वारा हिन्द महासागर में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घेरने की साज़िश बना रहा हैं। यह कहना बहुत ही सरल है कि भारत इस परियोजना में शामिल होकर अपनी आर्थिक समस्याओं का समाधान निकाल लेगा लेकिन यह अल्पकालीन समाधान है। जबकि भारत सहज रूप से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर चीन से आर्थिक छेत्र में लंबे समय तक मुकाबला करने में असफल रहेगा। जिसका प्रभाव साउथ ऐशिया में भारत को आर्थिक रूप में एक मजबूत देश होने में रोक सकता है। दूसरी तरफ इसका प्रभाव भारत को अपने राज्यक्षेत्र जैसे मुद्दे समाधान निकालने में परेशानी होगी।
ReplyDeleteशानदार लेख लिखे है नवनीत आप, आप का शीर्षक बेहद आकर्षक भरा है ।
ReplyDelete